भगवती आर्ष कन्या गुरुकुल महाविद्यालय ट्रस्ट

गुरुकुल के उद्देश्य

१. महर्षि दयानन्द द्वारा प्रतिपादित आर्ष शिक्षण-शैली एवं प्राचीन आश्रम प्रणाली द्वारा कन्याओं को विद्याव्रतस्नातिका बनाना

२. गुण-कर्मानुसार प्राचीन आदर्श वर्ण-व्यवस्था को पुनः प्रचलित करना।

३. कन्याओं को वैदिक धर्मानुसार आदर्श सुघड़ गृहिणी, उपदेशिका, सदाचारिणी, त्यागिनी, तपस्विनी, समाज एवं राष्ट्रसेवि कर्मठ एवं विदुषी बनाना।

४. राष्ट्र में भारतीय संस्कृति का प्रचार एवं प्रसार, संरक्षण करना।

५. "स्त्री शूद्रौ नाधीयाताम्" तथा "द्वारं किमेकं नरकस्य नारी" इत्यादि वचनों से कालक्रम में होते हुए नारी के अपमान को करके इसके सम्मान में मनुस्मृति के "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः" इस उद्घोष को संसार के सामने रखना ।

६. स्त्री जाति में लुप्तप्राय ब्रह्मचर्य पद्धति एवं वेद-वेदांगों के अध्ययन-अध्यापन के क्रम को पुनर्जीवित करना तथा चा निर्माण, स्वस्थ शरीर, सादा जीवन, उच्च विचार, ब्रह्मचर्य-पालन, उच्च कोटि की योग्यता, सर्वविध विकास, पुरुष स्वावलम्बन, सात्विकता यहां की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है

ओ३म् यथेमांवाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः ब्रह्मराजन्याभ्यां शूद्राय चार्याय च स्वायं चारणाय ।

इस यजुर्वेद के छब्बीसवें अध्याय के दूसरे मन्त्र में परमेश्वर स्वयं कहता है कि “मैंने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और अपने वा स्त्री आदि और अति शूद्रादि के लिए भी वेदों का प्रकाश किया हैअर्थात् सब मनुष्य वेदों को पढ़-पढ़ा कर, सुन-सुना कर विज्ञान बढ़ाकर अच्छी बातों का ग्रहण और बुरी बातों का त्याग करके दुःखों से हटकर आनन्द को प्राप्त होंइस कथानुसार इस संस्था का लक्ष्य आज के युग में अद्वितीय है

विशेषताएं

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संचालक :

श्री जगदीश सिंह आर्य

M: 9813083584

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ब्रह्मचारिणी आदेश आर्या

9991360222

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Mallkhamb

Mallkhamb nursery of district gurgaon, National level players, Participated in 37 national at Goa and Khelo India participant at tamil nadu, All over india rank 8.

Under 12 and 14 gold medalist at 34 mini sub junior nationals Held at Rohtak in Mallkhamb Pyramid Making Competition

श्री जगदीश सिंह आर्य
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ब्रह्मचारिणी आदेश आर्या
9991360222
आचार्या
डॉ. रवीन्द्र कुमार
9416188854
सम्पर्क सूत्र

 इस गुरुकुल की सर्वप्रथम विशेषता यह है कि यहां महर्षि दयानन्द द्वारा निर्दिष्ट आर्ष पाठविधि से ही शिक्षा दी जाती है

 ब्रह्मचारिणियों के भोजन ओर रहन-सहनादि में समानता का व्यवहार होता है

यहां कन्याओं को वास्तविक आदर्श ब्रह्मचारिणी बनाने के लिए विशेष परिश्रम कराया जाता है। जिससे वे न केवल विदुषी ही अपितु तपस्विनी और वीरांगना भी बनें तथा अबला न बनकर सबला तथा ब्रह्मवादिनी बनें

यहां ब्रह्मचारिणियां नियमित रूप से एक घण्टा श्रमदान करती हैं, जिसमें सफाई, गोसेवा तथा इसी प्रकार के सामयिक व सम्मिलित हैंइस श्रमदान द्वारा जहां ब्रह्मचारिणियों का स्वास्थ्य ठीक रहता है, कार्यक्षमता बढ़ती है वहां अपनी संस्था के ! हार्दिक स्नेह एवं आत्मीयता उत्पन्न होती है और “वसुधैव कुटुम्बकम्” की विश्वजनीन भावना का बीजारोपण होता है।

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