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Our Story
भगवती आर्ष कन्या गुरुकुल जसात 15 सितम्बर 1986 ई० से जनता की अनूठी सेवा करता आ रहा हैजसात ग्राम निवासी श्रीमान ठा० हनुमत सिंह जी के ज्येष्ठ सुपुत्र श्री जगदीश सिंह जी आर्य के जीवन को ठीक दिशा देने वाली उनकी धर्मपत्नी श्रीमती भगवती देवी जी ने आत्मचिन्तन करके निर्णय लिया कि मैं ऐसी सन्तान पैदा करूँ जो वेदानुसार “जनया दैव्यं जनम्” अर्थात् देवहितकारी जन उत्पन्न करेंइस वेद के आदेश, उपदेश, सन्देश का अनुसरण करके या तदनुसार सन्तान हो अन्यथा निःसन्तान ही रहेंकितना उत्तम शिव संकल्प “यथा नामा तथा कर्मा” श्रीमती भगवती देवी जी ने अपने विचार अपने पतिदेव श्री जगदीश सिंह के सामने प्रस्तुत किया। दोनों पति-पत्नी ने कई वर्ष इस पर वैचारिक मन्थन करके कन्या गुरुकुल खोलने का सुन्दर संकल्प कर गुरुकुल खोला।
उसी में अपनी सम्पूर्ण चल-अचल सम्पत्ति का पवित्र दान कर अपने जीवन को भी उसी की सेवा में लगा दिया। इसी प्रकार आर्य संस्कृति के मूल तत्त्व संयमतपविद्या और व्रत की रक्षा हेतु एक आत्मसाधना परायण, समर्पितभाव, वात्सल्यमूर्तिदम्पती ने सर्वमेघ की दीक्षा ली, जिनकी साधना का प्रत्यक्ष मधुरफल आपका प्रिय यह कन्या गुरुकुल है। भोगप्रधान एवं वासनामय दूषित पाश्चात्य सभ्यता की चमक दमक में आकण्ठमग्न भारतीय उच्च मध्यवर्ग और राजवर्ग की चिन्तनीय दशा को देखकर निराश व्यक्ति इसी साधना मन्दिर (कन्या गुरुकुल) में आकर विशुद्ध भारतीय संस्कृति का दर्शन कर अपने को कृतार्थ मानते हैंमहर्षि याज्ञवल्क्य की प्रसिद्ध उक्ति “यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म” (शतपथ) एवं “अग्निहोत्रं जुहुयात् स्वर्गकामः” (मैत्रायणी) के अनुसार श्री जगदीश सिंह जी आर्य एवं अर्द्धांगिनी श्रीमती भगवती देवी जी ने गुरुकुल खोलने से पूर्व अनेक वर्ष यज्ञों में यजमान के रूप में अनेक स्थानों पर भाग लिया
आपने आत्मिकशुद्धि के मार्ग को प्रशस्त करने हेतु गुरुकुल में कन्याओं की सेवा कार्य में संलग्न रहते हुए यज्ञीय जीवन को अपनायाइस युग की गिरती हुई परिस्थितियों में आदर्श कन्याओं की संस्था का संचालन कितना कठिन हैयह इस मार्ग के पथिक ही अनुभव कर पाते हैंइसमें आने वाली सभी बाधाओं को साहसपूर्वक चीरते हुए यह दम्पती ईश्वर विश्वास तथा साहस से आगे बढ़ते जा रहे हैंगुरुकुल को इस बात का गर्व है कि गुरुकुल के शैशवकाल की अवस्था में ही यहां से अनेक बहिनों ने शास्त्री कक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करके स्वर्णपदक भी प्राप्त कियावर्तमान समय में यहां 150 (एक सौ पचास) से अधिक कन्यायें विद्याव्रताभ्यास में संलग्न हैसर्वात्मन यह सब सञ्चालक एवं संस्थापक दम्पती के निःस्वार्थ पुरुषार्थ का प्रत्यक्ष परिणाम है इनके तप-त्याग की नींव पर लगा यह पौधा आज विशाल वृक्ष की भांति फलवान होकर जनता की सेवा कर रहा हैआज भौतिकता प्रधान युग में यहां प्रातः सांय वेद की ऋचायें गूंजती हैंस्त्री जाति पर इस साधक पति-पत्नी का बड़ा उपकार है
ब्रह्मचारिणियों के प्रवेश नियम
नवीन ब्रह्मचारिणियो का प्रवेश अप्रैल से जून तक होता है। किसी विशेष स्थिति में पीछे भी लिया जा सकता है
प्रवेश के समय छात्रा का पञ्चम कक्षा उत्तीर्ण होना आवश्यक हैअधिक योग्यता हो तो अत्युत्तम हैसाथ ही कन्या का वाग (सगाई) रहित तथा अविवाहित होना अनिवार्य है
दूध-घी का मासिक प्रबन्ध और वस्त्र पुस्तक आदि का व्यय भी अभिभावक ही देता है।
प्रवेश के समय 7100 रुपये प्रवेश शुल्क तथा भोजन के निमित्र 1500 रुपये मासिक के हिसाब से वर्ष भर का 18000 रू भोजन व्यय, इस प्रकार प्रारम्भ में कुल 25100 रूपये की राशि देनी होती हैजिससे ऋतु अनुकूल दिन में तीन बार घी- रहित भोजन दिया जाता है। अध्ययन शुल्क, विद्युत्, छात्रावास, जल, प्राथमिक चिकित्सा, पुस्तकालय और व्यायामादि साधनों पर होने वाला व्यय ब्रह्मचारिणियों से न लेकर गुरुकुल की ओर से किया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक छात्रा पर पय राशि गुरुकुल खर्च करता है।
प्रवेश के समय में कन्या के पास निम्नलिखित सामान होना चाहिए - ऋतु अनुकूल बिस्तर, थाली, कटोरी, गिलास, चमबाल्टी, लोटा, आसन (बोरी) तथा सन्दूक। कंघा, तेल, साबुन, सुई-धागा, चटाई आदि जरूरत का सामान साथ लाना होगाब्रह्मचारिणियों के वेश में एकरूपता लाने के लिए उनका वेश नियत हैयहां सफेद वस्त्र का प्रयोग होता हैगणवेष के अनु ४ जोड़ी सादा सलवार कुरता, दुपट्टा सम्मिलित
यहां भोजन सात्विक होता है जिसमें किसी प्रकार की खटाई और लाल मिर्च मसाला आदि सम्मिलित नहीं हैप्रवेश के समय आचार्या द्वारा कन्या की शारीरिक और बौद्धिक परीक्षा ली जाती हैइसमें उत्तीर्ण होने पर ही छात्रा प्रवेश प है। आजीवन ब्रह्मचारिणी रहकर वैदिक धर्म के प्रचार व प्रसार हेतु सम्पूर्ण जीवन लगाने की भावना वाली बड़ी आयु की जिइ छात्रा को भी प्रविष्ट किया जा सकता है
ब्रह्मचारिणी का पृथक् किया जाना
1- यदि कोई कन्या हीनबुद्धि, किसी व्यसन (चोरी आदि) तथा संक्रामक रोग से युक्त होने के कारण विद्यालय के अयोग्य समझी जाएगी तो वह पृथक् कर दी जाएगी
2- जो छात्रा प्रविष्ट होने के अनन्तर एक वर्ष तक निर्बुद्धि समझी जाएगी अन्यथा जो वार्षिक परीक्षा में लगातार दो वर्ष तक अनुत्तीर्ण होगी, वह विद्यालय से पृथक् की जाएगी।
3- यदि कोई छात्रा आचारहीनता अथवा गुरुकुल के नियमों का उल्लंघन करती मिलेगी तो उसके दोषानुकुल उसे शारीरिक, मानसिक अथवा आर्थिक दण्ड दिया जाएगा या वह विद्यालय से पृथक् कर दी जाएगी
कन्याओं के अभिभावक गुरुकुल के प्रबन्धक की अनुमति से ही ब्रह्मचारिणियों से मिल सकते हैं।
कन्याओं का प्रवेश विधि के अनुसार प्रवेश पत्र का भरकर किया जाता है।
प्रवेश शुल्क सहित आवश्यक धन देकर कार्यालय से रसीद प्राप्त कर लेना आदि सभी उचित कार्यवाही होने पर भी जब तक कन्या के पास गुरुकुल के निश्चित गणवेश के अनुसार वस्त्र एवं पात्रादि न होंगें उस समय तक नियमित रूप से कन्या का नाम प्रवेश पंजिका और दैनिक उपस्थिति पत्रक में नहीं लिखा जाएगा।
अभिभावक आदि द्वारा कन्याओं के लिए लाए हुए सामान को प्रथम कार्यालय में प्रबन्धक गुरुकुल को दिखला कर उनकी अनुमति से ही कन्याओं को दिया जा सकेगाइसका उल्लंघन करने वाले अभिभावक का सामान कन्याओं को नहीं दिया जाएगा। प्रबन्धक गुरुकुल को यह अधिकार है कि वह अनावश्यक और नियम विरुद्ध वस्तुओं को न देने देवें।
कन्या अपने सगे माता-पिता, बहिन-भाई व भाभी से ही मिल सकेगी। अन्य दूरस्थ जानकारों व रिश्तेदारों से नहीं मिल सकेगी
कन्याओं को अपने अभिभावकों से मिलने के लिए महीने का दूसरा रविवार के अतिरिक्त आधा घण्टा और रविवार के दिन एक घण्टा से अधिक समय नहीं दिया जायेगा
सभी स्त्री पुरुषों को गुरुकुल की मर्यादा के अनुकूल तड़क-भड़क रहित सादी वेशभूषा में ही गुरुकुल में आना चाहिए
गुरुकुल की सीमा में ट्रांजिस्टर बजाना, गन्दे गाने गाना, लड़ना-झगड़ना और गाली आदि समस्त अशिष्ट व्यवहार वर्जित है
रात्रि में ८ बजे के पश्चात् आने वाले महानुभावों के भोजन की व्यवस्था करने में गुरुकुल असमर्थ होगाआगन्तुक सज्जनों और देवियों को इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए
अध्यापन व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए पठन काल में कन्याओं के अभिभावक, संरक्षक तथा सम्बन्धी कन्याओं से नहीं मिल सकेंगे। विद्यालय के पाठ्य समय में कोई भी स्त्री या पुरुष गुरुकुल देखने के लिए अन्दर नहीं जा सकेंगेअतिरिक्त समय में प्रबन्धक
की आज्ञा से उनके द्वारा दिए गए सहायक के साथ ही गुरुकुल दर्शनार्थ अन्दर जाया जा सकता है
रात्रि ८ बजे से लेकर प्रातः ५ बजे तक कोई भी कन्या तथा अध्यापिका अपने अभिभावकों से नहीं मिल सकेंगी।
रात्रि ६ बजे के पश्चात् कोई भी कन्या तथा अध्यापिका अतिथिशाला में अपने अभिभावकों के पास नहीं रहेंगेकृपया अभिभावकजन इसके विरुद्ध आचरण करने की चेष्टा न करें
कोई भी ब्रह्मचारिणी गुरुकुल की आचार्या की अनुमति के बिना संरक्षक और सम्बन्धियों से नहीं मिल सकेगी।
बाहर से आई हुई कोई भी देवी कन्याओं के कमरे में नहीं ठहर सकेगीउसे स्त्रियों के लिए निश्चित अतिथिशाला में ही ठहरना होगाकन्याओं के बीच में गोष्ठी आदि करना भी वर्जित हैइसके विरुद्ध आचरण करने वाली देवियों को उसी समय गुरुकुल से जाना भी पड़ सकता है।
गुरुकुल में भड़कीली और तंग परिधान वाली देवियों और पुरुषों का प्रवेश वर्जित है
इसी प्रकार गुरुकुल की सीमा में हुक्का, बीड़ी, सिगरेट, शराब, माँस, भांग, गांजा, चरस आदि सभी प्रकार के मादक द्रव्यों का सेवन निषिद्ध है।
कन्याओं से मिलने के लिए अभिभावक जन प्रयत्नपूर्वक रविवार को ही आया करें(महीने के ।। (दूसरे) इस कारण कन्याओं से मिलने में कोई असुविधा नहीं होती
अभिभावकों के लिए निर्देश
कन्याओं के अभिभावक गुरुकुल के प्रबन्धक की अनुमति से ही ब्रह्मचारिणियों से मिल सकते हैं।