आश्रम व्यवस्था

गुरुकुलीय शिक्षा-पद्धति में आश्रम वास का विशेष महत्त्व हैगुरुकुल का अभिप्राय ही ऐसी शिक्षा से है, जिसके सब छात्रावास में रहते हों, जिससे उनकी दिन-रात देखरेख की जा सकेयह ब्रह्मचारिणियों की एक निश्चित दिनचर्या है, उर अनुसार जागरण, शौच, स्नान, सन्ध्या-हवन, अध्ययन, भोजन, विद्यालय, विश्राम तथा व्यायाम आदि कार्य किये जाते चलने-फिरने उठने-बैठने, बातचीत करने आदि में अनुशासन और शिष्टाचार पर विशेष बल दिया जाता है

परीक्षायें और उनकी अवधि

सभा

ब्रह्मचारिणियों की भाषण शक्ति बढ़ाने के लिए यहां मासिक, साप्ताहिक/पाक्षिक 'वाग्वर्द्धिनी सभा का आयोजन किया जाता है इसकी अध्यक्षता अध्यापिका वर्ग तथा संचालन छात्रावर्ग ही करता है

व्यायाम

गुरुकुल में बौद्धिक विकास के साथ-साथ शारीरिक उन्नति के व्यायाम्, प्राणायाम पर विशेष ध्यान दिया जाता हैइसके लिए दिनचर्या में निश्चित समय किया हुआ हैलाठी, तलवार, छुरी सञ्चालन, योगासन, प्राणायाम आदि विविध प्रकार के भारतीय व्यायामों के साधनों का गुरुकुल प्रबन्ध करता है

पारितोषिक

कक्षा में प्रथम, द्वितीय, तृतीय स्थान प्राप्त करने वाली छात्राओं तथा 'वाग्-वर्द्धिनी-सभा में विशेष भाग लेने वाली छात्राओं को यथाअवसर यथायोग्य पारितोषिक दिए जाते हैंजो ब्रह्मचारिणी पाणिनिमुनिकृत अष्टाध्यायी, धातुपाठ अथवा एक वेद को कण्ठस्थ करके सुना देती है, उसको भी विशेष पारितोषिक दिया जाता है।

व्रताभ्यास की परीक्षा

कन्याओं को विद्याभ्यास द्वारा बौद्धिक विकास करने हेतु जहां विश्वविद्यालय की परीक्षाएं दिलवाई जाती हैं, वहां व्रताभ्यास द्वारा शारीरिक, मानसिक, आत्मिक उत्थान में सहायक व्रताभ्यास की परीक्षा भी ली जाती हैगुरुकुल में छात्राओं के साथ रहकर उनके सभी आचार-विचारों का सूक्ष्म दृष्टि से अध्ययन करने वाली आचार्या ही यह परीक्षा लेती है। सुशीलता, स्वास्थ्य, सफाई, सेवाभाव, सहनशीलता और सत्याचरण इन गुणों को आचरण में लाने के लिए छः पत्र रखे गए हैवर्ष भर छात्रा के सतत नियमित निरीक्षण का आधार इसका परिणाम होता हैइसी के आधार पर गुरुकुल छोड़कर जाने वाली ब्रह्मचारिणी का चरित्र प्रमाण-पत्र बनाया जाता है

गुरुकुल के अन्य विभाग


गोशाला

गुरुकुल के पास एक गोशाला भी है इसके द्वारा जहां कन्याओं को शुद्ध एवं पवित्र दूध प्राप्त होता है, वहां गोवंश की वृद्धि एवं रक्षा भी होती है। कन्याओं को पशुपालन का क्रियात्मक शिक्षण प्राप्त होता है तथा खेती के लिए उत्तम खाद भी उपलब्ध हो जाती है


कृषि

कन्या गुरुकुल जसात का सुन्दर और सुचारु स्थल हैगुरुकुल के पास पर्याप्त भूमि हैजिसमें छात्रावास, विद्यालय, गोशाला, सुन्दर उद्यान, यज्ञशाला, कार्यशाला, स्नानागार तथा अतिथिशाला आदि अवस्थित हैंइसके अतिरिक्त शेष भूमि में गायों के लिए चारा तथा गुरुकुलवासियों के लिए अन्न उपजाया जाता है, जो गुरुकुल की बहुत बड़ी अन्न की समस्या का समाधान करता हैकन्याओं की सामयिक संरक्षक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए गुरुकुल की बहुत विस्तृत एवं सुदृढ़ चारदीवारी बनी है।


वाहन

गुरुकुल की अपनी जीप, ट्रैक्टर, स्कूटर, साईकिल आदि वाहन हैंजो कन्याओं की सेवा के लिए ही काम आते हैं।


प्रचार

जन सामान्य से अविद्यान्धकार को हटाने के लिए गुरुकल की कन्याएं उत्सवों, सम्मेलनों एवं यज्ञों में जाती रहती है। जिससे वैदिक धर्म का प्रचार व प्रसार किया जाता है। इनकी शिक्षा-दीक्षा, विचारों तथा जीवन के कार्यक्रमों को सुन देखकर नारी जाति को विशेष प्रेरणा मिलती है

आचार्या का जनता से निवेदन

कोई समय था जब आर्यावर्त में सर्वत्र गुरुकुल द्वारा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष साधिका शिक्षा दी जाती थीश्री वशिष्ठ, विश्वामित्र, पतंजलि, कणाद, सनत्कुमार, राम, कृष्ण, सुदामा आदि महात्मा गुरुकुलों के स्नातक थे और श्रीमती लोपामुद्रा, कौशल्या, सीता, अनसूया, मैत्रेयी, ब्रह्मवादिनी, गार्गी आदि देवियां गुरुकुल की स्नातिकाएँ थीं। उस समय गुरुकुलों में वेद-वेदांगों, उपांगों एवं योग की शिक्षा देकर सर्व विद्याओं से विभूषित किया जाता था, राज्य एवं जनता गुरुकुलों की सहायता करना अपना परम कर्त्तव्य समझते थे। किन्तु काल परिवर्तन के परिणामस्वरूप आज गुरु-शिष्य, पिता-पुत्र, भाई-बहिन, पति-पत्नी आदि को भी एक दूसरे पर विश्वास नहीं रहा और नानाविध-व्याधियों तथा विपत्तियों की वृद्धि हो रही है

इस दुर्दशा को दूर करने का एक मात्र उपाय यही है कि गुरुकुल शिक्षण पद्धति को पुनः प्रचलित किया जाए। गुरुकुल शिक्षा से आस्तिकता, आध्यात्मिकता, कर्त्तव्यबुद्धि, समाज सेवा, पारस्परिक सहयोग की भावनाएँ उत्पन्न होती हैं। अपने कर्त्तव्य-कर्म, साहित्य, इतिहास, संस्कृति और सभ्यता के प्रति प्रीति बढ़ती है। सबको उन्नति का समान अवसर दिया जाता है”सादा जीवन उच्च विचार” गुरुकुल का परम ध्येय है

भगवती आर्ष कन्या गुरुकुल जसात एक निराला आदर्श गुरुकुल हैजहां सभी सामाजिक दोषों एवं व्याधियों के अनुपम चिकित्सक महर्षि दयानन्द जी सरस्वती द्वारा प्रतिपादित सदाचार विधि के अनुसार सम्पूर्ण कार्य करने की शिक्षा दी जाती है। यहां की शिक्षा-दीक्षा, पालन-पोषण, रहन-सहन, अतीव सात्त्विक सादा एवं स्वच्छ हैअतः आप तन, मन, धन से इसे सहयोग देकर पुण्यलाभ प्राप्त कीजिये और अपनी पुत्रियों को सुशिक्षा से सुशोभित स्नातिका बनाने के लिए कृतसंकल्प हो जाइये।

!! ओ३म् !!

"संकल्प सफलता के द्वार खोलता है।"

जो सुधरना चाहता है उसे कौन बिगाड़ सकता है,

जो बिगड़ना चाहता है उसे कौन सुधार सकता है। 

जिसने जो ठान लिया उसने कर दिखाया है,

खुदा की कसम हर शख्स को खुदा ने कुछ सोचकर बनाया है।।

अंधेरे की कालिमा, उजाले से ज्यादा सिखाती है, 

जो मुश्किलों में भी हिम्मत नहीं हारते जिन्दगी उनपे मुस्कुराती है

तूफानों से खेल, अंगारों पे चल सकते हो तुम,

किसी दरिया की तरह मचल सकते हो तुम। 

उदास होने की तो कभी कोई बात ही नहीं, 

क्योंकि हर बार गिरकर सम्भल सकते हो तुम ।

हल्की सी खरोंचों से डरने वालों को कभी कुछ नहीं मिलता, 

जो काट कर देते हैं अंगुठा जिन्दगी उन्हें तीरंदाज बनाती है।।

ब्रह्मचारिणी की भावना (भजन)

गुरूकुल में पढ़ने आई हूं जिससे देवी बन जाऊँ मैं अपना अपने कुल देश जाति का जग में मान बढ़ाऊँ मैंयों तो मेरी लाखों बहिनें पढ़ती हैं स्कूल कालिजों में। मुझ में उनमें अन्तर क्या है यह दुनियां को दिखलाऊँ मैं।। मेरी शिक्षा वह शिक्षा है जो जीने की कला सिखाती हैहूं कोन कहां से आई सब भेद यह समझ जाऊँ मैं।। मैं सीखूंगी वे विद्यायें जिससे आखें खुल जाएंगी। तप-त्याग मुझे करना है जिससे आगे सुख पाऊँ मैं।। पढ़कर महाभाष्य देववाणी पर हो जाए अधिकार मेराशास्त्रों में अप्रतिहत गति हो ऋषिका की पदवी पाऊँ मैं।। उपनिषदें, स्मृति, दर्शन पढ़ मै। सार धर्म का समझेंगीशास्त्रों में अप्रतिहत गति हो ऋषिका की पदवी पाऊँ मैं। कितनी यह चाह सफल होगी यह तो भविष्य बतलाएगा। अब तो पर्याप्त है इतना ही यह भाव हृदय मैं लाऊँ मैं।गुरूकुल में पढ़ने आई हूं जिससे देवी बन जाऊँ मैं।। अपना अपने कुल देश जाति का जग में मान बढ़ाऊँ मैं।

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